प्रधानमंत्री मोदी अपने वादों पर करते हैं काम, प्राण जाए पर वचन न जाए, बताया क्यो बाकी राजनैतिक पार्टियां है विफल?

प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार के चुनाव को नेताओं की विश्वसनीयता का चुनाव बना दिया है कल प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि “देश में कई नेता अब अपने विश्वसनीयता खो चुके क्योंकि वह जो कहते हैं उसे कभी पूरा नहीं करते है लेकिन लोग जानते हैं की सच्चाई क्या है नेताओं की विश्वसनीयता को लेकर देश में एक संकट दिखाई देता है। बता दे कि प्रधानमंत्री मोदी जी लोकसभा के चुनाव के प्रचार में अपने वादों पर खरा उतरने कि बात कर रहें हैं, अपने चुनावी रैली से लेकर चुनावी भाषण तक में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने वादों पर अडिग रहने कि बात कही है, राजनैतिक पार्टियां कि विफलता पर सवाल तब उठने लगे जब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा “””हम प्राण जाए पर वचन न जाए, जैसे मार्ग पर चलने वाले लोग हैं !

क्यो राजनैतिक पार्टियां है विफल?

प्रधानमंत्री मोदी तब से सुर्खियों में बने हुए है जबसे प्राण जाए पर वचन न जाए की परंपरा को मजबूत करने की बात कही है और कहा “पॉलिटिकल लीडरशिप बहुत ही अविश्वसनीय बनती जा रही है अपने मृत्यु से 2 साल पहले वर्ष 1962 में जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपना आखिरी लोकसभा का चुनाव लड़ा तब भी उन्होंने जनता से ठीक वही वादा किया कि वह देश से गरीबों को मिटा देंगे और भ्रष्टाचार को भी समाप्त कर देगे।

और पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने गरीबी मिटाओ के नारे पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और फिर अपनी सरकार बना ली इस वादे के साथ कि वह गरीबी को मिटा देगी इसके बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में उनके पुत्र राजीव गांधी ने भी गरीबी और विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा और आज इंदिरा गांधी के पोते वर्ष 2024 में राहुल गांधी देश से एक झटके में इस गरीबी को मिटाने का वादा कर रहे हैं।

जो गरीबी पंडित जवाहरलाल नेहरू नहीं मिटा पाए इंदिरा गांधी और उनके पुत्र राजीव गांधी नही मिटा पाए जहां पिछले 75 वर्षों में कुछ नहीं बदला और जो मुद्दे देश के पहले लोकसभा चुनाव में थे उन्हीं मुद्दो को लेकर आज भी लगातार वादे किए जा रहे हैं हर नेता आज भी तो वही बातें कर रहा है, हर पार्टी आज भी तो वही बातें कर रही है,यह सब उसी देश में हो रहा है जिसे दुनिया को प्राण जाए पर वचन न जाए का सूत्र दिया था। उसी भूमि पर हो रहा है रामचरितमानस के अयोध्या कांड में बताया गया है कि भारत में रघुकुल यानि भगवान श्री राम के पूर्वजों के जमाने से प्राण जाए पर वचन न जाए की परंपरा चली आ रही है।

और जब कोई व्यक्ति अपने वचनों को तोड़ देता है तो समाज इसे बुराई के रूप में देखता है और कहा जाता है जब हमारे आम जनता के जीवन में हम किसी ऐसे व्यक्ति को मिलते हैं जो अपनी बात पर अडिग नहीं रहता है तो जनता उसके अस्तित्व को नकार देती है और जब कोई व्यक्ति अपने वचनों पर अडिग रहता है तो उसके लिए हमारे समाज में एक अलग सम्मान होता है।

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